हज़ार टुकडों में बट गया हूँ मैं,
कुछ इधर कुछ उधर ….
नाम के लिए जी रहा हूँ,
हज़ार सालों से, सदियों से
मैंने जैसे खून से लथपथ कपडे पहने है ..
आसुओं के धागों से बुने हुए…..
नीली नूरी ख़ामोशी से सनी हुई तलवार
आरपार हुई है मेरे चेहरे के परखच्चे उड़ाते हुए ….~नूर